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Wednesday 15 April 2015

कविता:- "बिटिया"

बिटिया जब आँचल में आए ,आँगन मुस्काता है
माँ की गोदी में जब खेले,घर भर खिल जाता है
फूलों सी कोमल वह नाजुक ओस सरीखी लगती
हर रिश्ता उसके ही कारण सुंदर कहलाता है ।
काम-काज में अव्वल रहती शिक्षा में भी आगे
बोझ नहीं होती बेटी वह सृष्टि का नाता है ।
बाबुल की पगड़ी है बेटी, माता की परछाईं
संस्कारों का उसके दम पर परचम फहराता है ।
पढ़-लिख कर रोज़गार करे अब, बेटी भी है बेटा
सारा जग बिटिया के नेह में गीत यही गाता है ।
सास-ससुर की सेवा करती, मर्यादा की रक्षा
इस पूँजी को पाकर तो ससुराल सँवर जाता है ।
Send by:- रमेश भाई आँजणा (IAF)     

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